बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

शब्द - श्वर

सफ़र जिन्दगीका अकेला कहाँ है
गीत गाता है अपनी,लबों से हमारे
कैसे सूरज से पूछूं सबेरा कहाँ है   /

प्यार का एक घरौंदा  बनाना कभी ,
अपनी महफ़िल में तेरी ताजपोशी करूँ
सल्तनत प्यार की एक बसाना कभी ...


प्यार फूलों में है ,प्यार कलियों में है ,
प्यार गुलशन में  ,प्यार गलियों में है
प्यार  नयनों में है ,प्यार पलकों में है
कपोलों   में   है  प्यार  अधरों   में है -

वादियों को गुरुर है -
दामन में उनके फूल खिलते हैं ,
शुक्र है ,जन्नत के वासिंदों का
पत्थरों  से    प्यार   करते   हैं /

अक्स  दिखता  है  खुदा   का  प्यार   में ;
राँझा और हीर ने ,एक दूजे को खुदा माना-


बेमुरौअत न हुयी
जिंदगी का हिसाब चाहता हूँ ,
कायनाते उल्फत ,बेहिसाब हो गयी है -

रफ़्तार-ए-उलफत रकीब बन गयी है
पीछे रह गया  वो मोड़
लिखा था जिसने नसीब मेरा --


अक्स आईना नहीं   होता ,
ढूढता है अक्स आईने में ,
मुझे बनाया किसने -

तेरे कूंचे में ढूंढ़ते  रहे निशान  अपने ,
हैरान हूँ ,मिलते उधर हैं ,
जिधर में गया नहीं -

लिखता रहा कलाम -ए-इश्क
पढ़ने  वाले नहीं मिलते
उठाई नजर देखा कलाम
इश्क पढ़ रहा था -


तेरी जुल्फों का कर्ज है हम पर ,
अदा करेंगे किश्तों में
कभी घटा बनकर कभी
बरसात बनकर -


काफिला -ए- वरक मजबूर  आयतों से
 तस्लीम होती गयीं किताब बनती गयी ..


                                 उदय  वीर  सिंह  




5 टिप्‍पणियां:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

khoobsurat kavita... sarthak bhi..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मुझे तो हर जगह बस उसी का श्रंगार दिखता है

Maheshwari kaneri ने कहा…

गीत गाता है अपनी,लाबों से हमारे
कैसे सूरज से पूछूं सबेरा कहाँ है
विल्कुल सही... सफ़र जिन्दगीका अकेला कहाँ है
बहुत सुन्दर...

Rakesh Kumar ने कहा…

प्यार फूलों में है ,प्यार कलियों में है ,
प्यार गुलशन में ,प्यार गलियों में है
प्यार नयनों में है ,प्यार पलकों में है
कपोलों में है प्यार अधरों में है -

शानदार प्रस्तुति.
आपके शब्द और भाव गजब के होते हैं.
चाहे वे आपकी प्रस्तुति में हो या टिपण्णी में.
दिल जीत लेते हैं.

मेरे ब्लॉग पर आपके आने का बहुत बहुत
आभार,उदय जी.

अनुपमा पाठक ने कहा…

प्यार पलकों में है
सुन्दर...!