रचे विरंची के भावों का
मै कैसे प्रतिकार लिखूं ..
अपराध जो हमसे हुआ नहीं
सजा , कैसे स्वीकार लिखूं ..
.शापित चेहरे अभिशप्त स्नेह ,
शोक गीत का मंच मिला ,
संवेदन - सून्य , निर्वात वलय ,
बिखरे जीवन का अंक मिला ....
भाषा- हीन ,कलम कैसी ?
कैसे घृणा को प्यार लिखूं ....
भूखा सोना भाग्य अगर
ये देश हमारा भूखा है ,
जन - जन में छाई शोक लहर ,
कैसा प्रारब्ध अनूठा है ....
गूंजे विरुदावली , जयचंदों की ,
कैसे मैं आभार लिखूं .....
भय , भूख , और दैन्य , याचना ,
इस जीवन के नगीना हैं ,
वस्त्र - हीन ,बेबस , लाचारी,
क्या भाग्य ? इसी में जीना है ?
भारत का भाग्य लिखा ऐसा ?
कैसे मैं उपकार लिखूं ....
अड़ियल नाविक , दिशाहीन
नाव भंवर में डूब रही
अनुचर मद - पथ ,दिवास्वप्न ,
मरुधर में गंगा खेल रही ,...
कुसुम बेल हांथों में साजे ,
कैसे मैं पतवार लिखूं --
चाँद वही तारे भी वही .
सुंदर प्रकृति की गोंद वही .
सूर्य वही , सागर भी वही
अमृत गंगा की धार वही ..
पर नहीं रहा सम - भाव वही
कैसे विष- रस, को रस- धार लिखूं ....
.शापित चेहरे अभिशप्त स्नेह ,
शोक गीत का मंच मिला ,
संवेदन - सून्य , निर्वात वलय ,
बिखरे जीवन का अंक मिला ....
भाषा- हीन ,कलम कैसी ?
कैसे घृणा को प्यार लिखूं ....
भूखा सोना भाग्य अगर
ये देश हमारा भूखा है ,
जन - जन में छाई शोक लहर ,
कैसा प्रारब्ध अनूठा है ....
गूंजे विरुदावली , जयचंदों की ,
कैसे मैं आभार लिखूं .....
भय , भूख , और दैन्य , याचना ,
इस जीवन के नगीना हैं ,
वस्त्र - हीन ,बेबस , लाचारी,
क्या भाग्य ? इसी में जीना है ?
भारत का भाग्य लिखा ऐसा ?
कैसे मैं उपकार लिखूं ....
अड़ियल नाविक , दिशाहीन
नाव भंवर में डूब रही
अनुचर मद - पथ ,दिवास्वप्न ,
मरुधर में गंगा खेल रही ,...
कुसुम बेल हांथों में साजे ,
कैसे मैं पतवार लिखूं --
चाँद वही तारे भी वही .
सुंदर प्रकृति की गोंद वही .
सूर्य वही , सागर भी वही
अमृत गंगा की धार वही ..
पर नहीं रहा सम - भाव वही
कैसे विष- रस, को रस- धार लिखूं ....
उदय वीर सिंह
३०/०५/२०११