लिख देना मेरे आँचल ,अपना नाम ही सही ,
बीत जायेगा ये जीवन , गुमनाम ही सही -
पूछ लेंगे हम हवाओं से ,तेरे आशियाने को ,
बदल डालो नाम या , मुकाम ही सही-
हवाओं की आहट को सांकल लगायें क्यों ,
ले आती तेरे देश से तूफ़ान ही सही -
खुबशूरत बहानों का , मरकजी खजाना तूं,
एक बार सच तो कह दे इल्जाम ही सही -
मदारी ज़माने का , जमूरे को बोलता ,
मोहाजिर से लगते हैं ,भगवान ही सही -
लिखता फसाना कब जमाना इनायत का ,
कद्रदानों से अच्छा , बेईमान ही सही
उदय वीर सिंह
बीत जायेगा ये जीवन , गुमनाम ही सही -
पूछ लेंगे हम हवाओं से ,तेरे आशियाने को ,
बदल डालो नाम या , मुकाम ही सही-
हवाओं की आहट को सांकल लगायें क्यों ,
ले आती तेरे देश से तूफ़ान ही सही -
खुबशूरत बहानों का , मरकजी खजाना तूं,
एक बार सच तो कह दे इल्जाम ही सही -
मदारी ज़माने का , जमूरे को बोलता ,
मोहाजिर से लगते हैं ,भगवान ही सही -
लिखता फसाना कब जमाना इनायत का ,
कद्रदानों से अच्छा , बेईमान ही सही
उदय वीर सिंह
6 टिप्पणियां:
हवाओं की आहट को सांकल लगायें क्यों ,
ले आती तेरे देश से तूफ़ान ही सही -
बाँहें फैलाये खड़ी जीवटता को नमन!
वाह ...बहुत खूब ।
इस सार्थक रचना के लिए बधाई स्वीकारें
नीरज
बहुत सुन्दर सृजन!
bhaut hi khubsurat aur pyari rachna....
Great couplets Uday ji . Enjoyed reading.
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