मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

आपकी नजर

इस ज़माने  ने  दी  हमको रुसवाईयाँ ,
पर ज़माने  को  हम, प्यार करते रहे          **

छोड़  आये थे शाहिल  बहुत  दूर हम ,
कश्तियाँ उनको दे, हम  भंवर  में रहे          **

हमने  चाहा   ख़ुशी , पाई    दुश्वारियां ,
राह शोलों  की हम, फीर भी चलते रहे         **

हम से डरता रहा हर ज़माने  का गम ,
हम तो खुशियों की ,आहट से डरते रहें        **


राह -ए-जख्मों से हमको नहीं है गिला ,
उनके   दर  से    हमेशा   गुजरते    रहे        **


पत्थरों   से  मुझे  इश्क  हो  ही    गया ,
उदय   हर   कदम   साथ   मिलते   रहे        **


                                           उदय वीर सिंह



7 टिप्‍पणियां:

सागर ने कहा…

छोड़ आये थे शाहिल बहुत दूर हम ,
कश्तियाँ उनको दे हम भंवर में रहे bhaut hi sundar gazal....

रविकर ने कहा…

शानदार प्रस्तुति |
बहुत-बहुत आभार ||

Smart Indian ने कहा…

@हम से डरता रहा हर ज़माने का गम ,
हम तो खुशियों की ,आहट से डरते रहें

वाह!

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत ही बढि़या ।

Kailash Sharma ने कहा…

हम से डरता रहा हर ज़माने का गम ,
हम तो खुशियों की ,आहट से डरते रहें **

बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..आभार

रचना दीक्षित ने कहा…

हम से डरता रहा हर ज़माने का गम ,
हम तो खुशियों की ,आहट से डरते रहें
सुन्दर शब्द चयन और भाषा. बेहतरीन प्रस्तुति

दिगम्बर नासवा ने कहा…

kya sher hain sar ... lajawaab ...