सोमवार, 15 अगस्त 2011

मूल्य

मूल्य  
गिरता है,
 महंगाई   का 
उपलब्ध रोटी उसको भी  ,
जो अक्सर   ख्वाब 
देखा करता है..
बनाने को आशियाना ,
सर्द रातों में रजाई ,
बापू की दवाई  ,
नौनिहालों को विस्वास ,
जीवन   का ,
चहरे पर मुस्कान ,
जो कहीं ,चलते -चलते,
खो गयी ,पाए लुगाई .../
काश ! गिर  जाता ,गिरता ही जाता.......
आशमान छूता ,शिखर पाता......
मूल्य !
बोध का,ज्ञानका ,सम्मान का,
नैतिकता का,सदासयता  का,
आचार का,मनुष्यता का,
विनय का,विवेक का,
वचन का,......../
नाउम्मीद न होते ,
श्वप्न- द्रष्टा ,
जो देखे थे ....
समर्थ भारत ,
एक भारत,
 जन समूह-
 भारतीयता  का 
एक स्वर ,
जय-हिंद .
अफशोश !
हालत स्थिर है,
न गिरा  पा रहे हैं
न उठा पा रहे हैं........./



                               उदय वीर सिंह .


1 टिप्पणी:

Suresh Kumar ने कहा…

अतिसुन्दर रचना..."मूल्य" का मूल्य बहुत सुन्दर भावों से व्यक्त किया है आपने...आभार