आतंक की लौ में हम निर्दोस जलते रहे हैं /जलाने वाले मदारी भय ,भूख ,लोभ ,मोक्ष का प्रलंभन दे , महफूज बैठ नज़ारा देखा करते हैं बस उंगलियाँ चलती हैं ....रिमोट पर / पर ये नादान भूल जाते हैं कि सदासयता ,प्रेम ,क्षमा शील दया ,करुना ,मानवता की इन्द्रियां हैं ,
इनके बिना ,हम विकलांग है ,अधूरे हैं / विजय हठ की हो सकती है ,मानवता की नहीं / जीवन तो प्रकृति का होता है ,हम तो माध्यम हैं / इन्हें मिटाने का अधिकार किसी को नहीं है / मिटायें तो वैमश्यता , अहंकार , द्वेष .......]
आतंक की सुबह ,
शाम के लिए तरसती ,लाचारगी सी,
सपनायी आँखें ,प्रतीक्षारत /
अमन की बेला,
दिवा-स्वप्न सरीखा ,
फिरभी सजाती ,आस लेकर ,अरदास लेकर /
बंधक बनाये गए मानो ---
भाष्कर ,मयंक ,
बिना आदेश स्थान परिवर्तन नहीं ,
सहम सा गया ,ठहर सा गया ,
समय !
कब ? कहाँ? कैसे खाक हो जाएगी जिंदगी ...
मानों इश्वर की नहीं आतंक की है /
अफ़सोस नहीं ,सिकन नहीं ,
दया नहीं ,क्षमा नहीं, शील नहीं ,सतोष नहीं ,
देकर ,वैधव्य ,अपाहिज जीवन , लाचारी ,
खुश होता रहा ,अट्टहास करता रहा ........
जल गए आग में ,
* मानव और मानव-बम दोनों ,
इस आग में नहीं जला कोई सगा ,
पुत्र , पुत्री ,पत्नी या बाप .......
आत्मघाती बने ,मासूम बेबस ,
जल गए आग में ,
* मानव और मानव-बम दोनों ,
इस आग में नहीं जला कोई सगा ,
पुत्र , पुत्री ,पत्नी या बाप .......
आत्मघाती बने ,मासूम बेबस ,
वो मजलूम ,मुफलिस पराये थे ,किराये के ,
अंजाना रह गया दर्द उनका ,
अंजाना रह गया दर्द उनका ,
कारक बने विध्वंस के ...
क्या समझ थी दुनियां की उनको ?
क्या समझ थी दुनियां की उनको ?
आज मूक है वाचाल ,...
पूछता है खून दोनों का ,
अपने और पराये का .....
लौटा सकते हो मेरा बचपन ?
मेरे माँ -बाप ?
आँचल की छाँव ?
अर्थी का कन्धा ,राखी की कलाई ?
मेरा सुहाग ?
मेरी बैसाखी ?
..... नहीं न !
क्या मिला ?----
न अपने ! न पराये !
छूट गए हाँथ ,जिनको सजाने की हसरत ,
छोड़ गया रुदन ,उपेक्षा ,लाचारगी,
दोनों के लिए
सदा के लिए
शायद !...........
उदय वीर सिंह .
५/०५/2011
मेरे माँ -बाप ?
आँचल की छाँव ?
अर्थी का कन्धा ,राखी की कलाई ?
मेरा सुहाग ?
मेरी बैसाखी ?
..... नहीं न !
क्या मिला ?----
न अपने ! न पराये !
छूट गए हाँथ ,जिनको सजाने की हसरत ,
छोड़ गया रुदन ,उपेक्षा ,लाचारगी,
दोनों के लिए
सदा के लिए
शायद !...........
उदय वीर सिंह .
५/०५/2011
10 टिप्पणियां:
आपका लेखन बहुत हृदयस्पर्शी,मार्मिक और सटीक है.दिल को आंदोलित कर देता है.
सुन्दर,सार्थक भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आयें.नई पोस्ट जारी करदी है.
दर्दनाक बेहतरीन रचना ...मगर इन लोगों की समझ कहाँ आएगा भाई जी ! हार्दिक शुभकामनायें !!
भाई उदय जी बहुत सुंदर कविता बधाई |
लौटा सकते हो मेरा बचपन ,
मेरे माँ -बाप ?
आँचल की छाँव ?
अर्थी का कन्धा ,राखी की कलाई ?
मेरा सुहाग ?
मेरी बैसाखी ?
मर्मस्पर्शी सवाल ...... बहुत संवेदनशील रचना
uday ji namskar
satish ji ne sahi kaha
aapke blog par aana bahut accha laga
भावनात्मक प्रश्न...बहुत खूब ।
बेहद मार्मिक और दर्दभरा चित्रण किया है।
बहुत संवेदनशील रचना.........हार्दिक शुभकामनायें...
लौटा सकते हो मेरा बचपन ,
मेरे माँ -बाप ?
आँचल की छाँव ?
अर्थी का कन्धा ,राखी की कलाई ?...
Beautiful expression !
Very well written Uday ji
.
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई
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