कल्पनाओं में चलकर बहुत थक चुके हैं ,
ख़ुशी का एक लम्हा , हकीकत बना दो ------
नहीं चाहते हम कुबेरों सी दुनियां ,
बदनशिबी सही मेरी दौलत बना दो ------
टूटने के लिए एक झोंका बहुत है ,
नाजुक ह्रदय को तो पथ्यर बना दो ------
बंद कमरों में जीते बहुत दिन बीते ,
देख लूँ भर नजर अब तो पर्दा हटा दो -------
चल सके ना कदम , खुशनशिबी के संग ,
दिल -ए - आरजू अब मुशीबत बना दो ----------
याद आयेंगे हम जी, ख़ुशी हो गम हो ,
उदय दो नयनों की , जरुरत बना दो ----------
उदय वीर सिंह .
१०/०२/२०११
ख़ुशी का एक लम्हा , हकीकत बना दो ------
नहीं चाहते हम कुबेरों सी दुनियां ,
बदनशिबी सही मेरी दौलत बना दो ------
टूटने के लिए एक झोंका बहुत है ,
नाजुक ह्रदय को तो पथ्यर बना दो ------
बंद कमरों में जीते बहुत दिन बीते ,
देख लूँ भर नजर अब तो पर्दा हटा दो -------
चल सके ना कदम , खुशनशिबी के संग ,
दिल -ए - आरजू अब मुशीबत बना दो ----------
याद आयेंगे हम जी, ख़ुशी हो गम हो ,
उदय दो नयनों की , जरुरत बना दो ----------
उदय वीर सिंह .
१०/०२/२०११
1 टिप्पणी:
सुन्दर रचना पर इतनी उदासी क्यु दोस्त जीवन तो उल्लास का नाम है फिर इसे सकारात्मक अंदाज़ से ही जिओ तो अच्छा है न , जो भी मांगो हक से मांगो हर कोई तो अपना है न ?
सुन्दर रचना !
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