शनिवार, 18 दिसंबर 2010

***आंचल ***

चराचर    का     
 मूर्त ,    
प्रवाहित  रसधार ,  
 अमृत   का   स्रोत  ,
बिरंची  की   विभिन्ताओं  का  पर्याय     ,  
 स्थूल   /
निखिल  ब्रह्माण्ड  का soogyat  स्थल     ,
शरण  स्थली ,अजेय  विजेताओं     की  ,
भूले  ,बिसरे  उपेक्षित  आशाओं   की  ,
नमन  ,स्थल - 
          योगी , यती , देवताओं   का   /
एक   मात्र  सुरक्षित  कवच  ,
जीव  के  सृजन  का  /
निर्माण  जिसका  अद्वितीय  ,
आकार  vishal      इतना  ,
असंख्य  ताज,  महल  समां   जाये  /
साक्षी   अनंत काल   का  ,
अतीत  का , 
भविष्य  का   ,
वर्तमान  का  ,
           - देदीप्यामान  ,हस्ताक्षर   /
मिट  गये  राजा  और  रंक   , 
मिटे   सृजन  ,श्रीस्तियाँ  ,स्मृतियाँ  ,
 प्रभा -मय  ,निर्भय  ,
अडिग  आज  भी  
निश्चल  भाव    में   है  /
नहीं  है  इसके  पास  ,
दैन्यता  ,विपन्नता  ,पक्षपात ,
भेद ,  भ्रष्टाचार ,
ना    कोई    श्याह   ,  ना   सफ़ेद  /
विकृतियाँ   हमारी     हैं  ---
मिटने   को ,  मिटाने   को  तत्पर    ,
बनने  को  इश्वर   !
होकर  निरुतार      
लौटते   हैं   ,
gahate   हैं   शरण   /
यात्रा  का  प्रारंभ    , 
अंतिम  पड़ाव ,
 -आंचल .......   
माँ  का   या    मौत  का   / 

                           उदय वीर सिंह ,
                             १७/१२/२०१० 






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