शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

नयनांतर

असीम  शक्ति ,अनंत   ज्ञान , से    ये  भारत  भरपूर    है ,
बन के विवेचक कर लो मंथन ,क्यों शाह-ए-वतन मजबूर है /
    जिह्वा  में आदर्श ,कर्म में ,सूनापन   आ     जाता है ,
    सूत्र-वाक्य, जब ग्रंथों  का व्यहार  नहीं  बन पाता है /
    दया, क्षमा, का  सूरज डूबा , काले     बादल   छाये ,
    कम्पित पीड़ित आँखों में  ,प्यार पनप नहीं पाता है
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        करता बंदन मिले वेदना,अभिशापित हो जाता मन ,
        टुटा दर्पण बिखरा मंजर ,आकार नहीं   बन पाता है /
        आत्मोत्सर्ग कर ,जीवन  मातृभूमि  के   रखवाले ,
        दायित्व -बोध तो करवाते पीछे-पीछे चलने  वाले  /
बारी आती मिटने की  ,आचार बादल जाता है ---------
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 दंभ    द्वेष   पाखंड   की  सीमा   होती  छोटी  ,
 अनावृत हो जाने पर ,दीदार बादल जाता है  /-----
         अवसर  का अभाव,   पल्लवित प्रतिभा   कैसे  होती ?
          अपणे -पराये  ,ऊँचे , निचे ,   खण्डों   में   खो  रोती /
         एक सौ सतरह साल काओलम्पिक, १७ मेडल पाए हैं ,
         कर लो गड़ना कितनी उपलब्धियां अपने घर ले आये हैं /
         निखिल- विश्व के अग्र क्षितिज,परकितना अन्वेषण जाये हैं,
         शिक्षा ,स्वास्थ्य , सुरक्षा  में ,लाचारी    ही   तो  पाए हैं /
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        उर्वर धरती ,मीठा पानी ,श्रम का कोई अकाल नहीं  ,
        फिर भी भूखा  ,नंगा, जन  कोई पुरसा-  हाल नहीं  /
        होने को मदहोश ,मदिरालय तो   बनाये   जाते   हैं  ,
        कुंठित- आनंद की प्रत्यासा ,होटल तो सजाये जाते हैं,
शिक्षालय  के निर्धारण में ,प्रतिमान बदल जाता है  /---------
        भ्रस्ट आचरण, आत्म-प्रवंचन ,आत्म -मुग्ध हो जाता मन ,
        न्याय की   आशा   कहाँ रही  ,पक्षपाती हो  जाता   मन  /
    
          

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