वतन के लिए फिर कहाँ पाओगे ------
प्यार बनकर हृदय में अनवरत बह चलो
बुझाओ अनल को लगाओ नहीं ---
घरों को बसाओ उजाड़ो नहीं ,
सींचो चमन को जलाओ नहीं -----
नफ़रत दिलों में जो भरती रही
प्यार का वो चमन फिर कहाँ पाओगे -------------*
उम्रें बीत जातीं , पसीना बहाकर ,
बनता है हसरत का एक आशियाना ------
अरमानों की अर्थी इंटों में सजी है ,
क्या जानेगा ?बेदर्द ,कातिल जमाना ----
कीमत लगाया एक चिगारी से इनकी ,
राख़ पाओगे ,घर फिर कहाँ पाओगे ------------*
पूछेगा इतिहास ? बोलोगे क्या ?
एक भाई ने ,भाई को मारा है खंजर ?
एक आंगन में खेला व खाया था मिलकर ,
टुकड़े करोगे ? बनोगे सिकंदर ?
माँ, बहनों की मांगो का, मिटता है सिंदूर ,
सूनी गोंदों , को कैसे तुम भर पाओगे ?------ *-
*** ***** *****
मानवता की डगर ना मिटाओ सहोदर ,
भटकोगे दर-दर ! फिर नहीं पाओगे !---------*
उदय वीर सिंह .
१७/११/२०१०.
1 टिप्पणी:
दिल कि गहराई से लिखा गया गीत बधाई
एक टिप्पणी भेजें