शनिवार, 6 नवंबर 2010

विजेता या हारा

दिव्य प्रेम का आलोक  ,
पिताश्री ने दिखाया था ,संजय  की तरह /
स्वर्ग प्राप्ति का पथ , वरण, वीरगति !
मातृभूमि की बलि वेदी पर  /
सौभाग्य  उन्हें मिला ,गिरे तो  माँ की गोंद में ,
हत, वैरी के अभिमान को /
माँ का संकल्प --पुत्र बनना होगा !
एक नहीं ,करोड़ों माँओं,की आस का, विस्वास का ,
अजेय प्रतिमान /
मेरी ही नहीं ,उन माँओं ,बहनों की उजड़ी मांग को,
 करना सलाम,जिनकी दिलेरी से हम फह्फूज हैं /
न्योछावर किया ,अपना  सर्वश्व  /
अब तेरी बारी है /  उठाओ गांडीव ,उद्दघोष करो --विजय की /
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प्रेरणा ,साहस ,बलिदानी ईक्षा,जो दिया अपने ,शुक्रिया /
शिरोधार्य !
विनम्रता से चाहता हूँ,   निराकरण अपणे प्रश्न का ,
माँ ! बताना लोरी की तरह  /
-जूते साथ  नहीं देते ,टूट जाते हैं ,अल्प- दबाव   पर ,
-गल रहीं अंगुलियाँ ,निष्क्रिय दस्तानों में ,
-हिमगिरी के तूफान ,  ना सह पातीं वर्दियां ,
-व्यतिक्रम, विपन्न, तकनीक कर देती वक्त पर दगा  ,
-भूखे रहना नियति जैसे हो गयी ,
-कठिन, दुर्गम पथ , कृशकाय तन,सहायता  की पुकार !
प्रतिउत्तर  -आगे  बढ़ो !आगे बढ़ो !
दुश्मन साम्हने,बेख़ौफ़ !
अरि-दमन का कर के प्रण ,मिटाने को वजूद ,
संधान कर दिया अश्त्र -शस्त्र   /
ये क्या !प्रहार निष्फल  ! ,लक्ष्य अभेद्य !
फायर हो गए ,मिस -फायर,दरक गयीं तोपें ,गन  ,
जो मानक-हीन  थीं ,दगीं,दगा दे गयीं /
चैतन्य शत्रु ,सीना छलनी कर गया, बिन पल गंवाए /
गिरा हूँ गोंद में, लाचार /----
बता --मैं विजेता हूँ  ? कि हारा हुआ  ?
अंत समय करता प्रणाम ,विनय  /
भेज देना,  मजबूत कफ़न,कोफीन ,
प्यार का, आंचल का, स्नेहाशीष ,
बिन- व्यापार  !
तेरे उत्तर का इंतजार ---------

                               उदय वीर सिंह.
                               ६/११/२०१०

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