प्रकृति के सुंदर वर होते ------------/
निर्मल नीर , निष्पाप शैशव सा ,
अंतर्मन के स्वर होते /------------
विचरण करते निर्भय मन ,मुक्त सृष्टी के कानन में ,
कोई कहता जंगल है ,हम कहते वे घर होते /-----
संकलित कर दावानल ,निहारिका बन उद्वेलित ,
कोई कहता प्रचंड अग्नि हम कहते निर्झेर होते /----
रचना रचने को आतुर ,निर्विकार संदेह रहित ,
नव पथ ,नव निर्माण हेतु ,हर-पल तत्पर होते /------
तपते मरू का उच्छ ताप ,घोर तिमिर का शंशय क्यों ?
कोई कहता कठिन डगर ,हम कहते सुंदर होते /-------
अस्ताचल को सूर्य चलेगा ,सूना होगा व्योम ,
हस्ती नहीं मिटने को उनकी ,वे तो नित्य अमर होते /-------
कितने निश्छल ,कितने निर्भर ,संकल्पित मन जीने को ,
बीता अतीत दुर्लभ हो जाये , नव -जीवन पथ सर्जित हो /-----
कब ?कौन ? कहाँ ? क्या ? छूटा क्यों इसका संज्ञान करें /
बीती रात होगा सूर्योदय , नव -प्रकाश निश्चय होंगे /----
उदय वीर सिंह .
४/११/२०१०
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