प्रतिध्वनित होते हैं
आकार लेकर /
कर्णप्रिय तो नहीं ,चीत्कार करते हैं ,
सुन तो लो !
अभिलाषा, आशा के तार,
वीणा में सजते हैं ,बजने के लिए /
तोड़ देना तो ईमानदारी होगी ,
प्रतिमान इतने ऊँचे नहीं होते /
प्रेरक बनते हैं कदम -
चल पड़े निर्मोह ,निर्माण -पथ पर ,
बेड़ियाँ हो, पथ हो कंटकीय ,विरुद्ध हो ऋतू ,
आनंदमार्ग के मानिंद सुलभ सब ,
कठोर मानदंडो को रौंदता संकल्प के क्या कहने /
अभिलाषा थी ,चूना नीलगगन को ,
जो अंतहीन है ,
हृदय -विहीन ,सास्वत ,अरूप ,
अजेय ,आवरण निशा का /
क्षण-मात्र भी प्रकाशित कर सकूं स्वंयं भास्मित होकर ,
मेरा संकल्प मुझे निहारेगा ,
सम्मान देकर /
उदय वीर सिंह .
१८/९/२०१०
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