झूठी प्रीत ,पराये -पन से अपनेपन की पीर भली /---
पावन-सलिला,दूषित-जल,से घट,पनघट की नीर भली/
वातायन को खोल उदय,स्वक्ष समीर को आने दे ,
ममता का आँचल खुला हुआ ,कुछ प्रसून बरसाने दे /
पीड़ित मौन ,सून्य आलंबन, आशा के दीप नहीं होते ,
बिस्तृत व्योम ,सानिध्य सुगम,इक्षित लक्ष्य,को पाने दे /
क्या खोया,मत संचित कर,क्या पाना है लक्षित कर,
भींगीआँखों में स्वप्न भरो, बे -पीर हृदय हो जाने दे/
उष्मित अंक,कलुषित नैनो, से कंटक-पथ,जंजीर भली /--
बिस्तृत सागर में नौकायन,उन्माद भरा मत चुनना क्यों ?
कर तिरोहित उद्वेग -अग्नि में,समस्त विकार जल जाने दे /--
प्रस्तर बन निर्मित हो जाये,सृजन स्वरूप से डरना क्यों ?
नींव का पत्थर बनना होगा ,स्व-स्वरुप मिट जाने दे /--
दिव्य रूप,नित दुखती- रग से, ताजमहल की नींव भली /----
निष्प्रयोज्य समझ तज दिया गया, उसका मूल्य समझाने दे ,
अंतहीन बन गया तिमिर ,प्रकाश पुंज बन जाने दे /
भींगा तन- मन, वर्षा के संग ,अम्लीय नीर का भान नहीं ,
जला पंख ,पगहीन हुए ,मत शोक - गीत को गाने दे /
षड्यंत्र ,लोभ ,के दग्ध-शिखर से मेरी फूटी तकदीर भली /-----
उदय वीर सिंह.
३/१०/२०१०
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